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March 29, 2024
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#राजस्थान में भी हुआ था 51 साल पहले #कर्नाटक जैसा #नाटक

  • May 20, 2018
  • 1 min read
#राजस्थान में भी हुआ था 51 साल पहले #कर्नाटक जैसा #नाटक

उदयपुर। सभी 95 गैरकांग्रेसी विधायकों ने चुनाव के बाद संयुक्त विधायक दल गठित कर लिया और अपनी दावेदारी पेश कर दी। लेकिन राज्यपाल डॉ. संपूर्णानंद ने 4 मार्च को इस आग्रह को ठुकरा दिया और उदयपुर से विधायक चुने गए और इस चुनाव से पहले सीएम रहे मोहनलाल सुखाड़िया को सीएम पद की शपथ लेने का न्योता दे दिया। कर्नाटक जैसा एक खेल 51 साल पहले राजस्थान में हुआ था। बात 1967 की है। राज्य का चौथा चुनाव था। कांग्रेस को 184 सदस्यों वाली विधानसभा में महज 88 सीटें मिली थीं। बहुमत के लिए 93 सीटें चाहिए थीं। इससे विरोधी दलों और आम लोगों ने सड़कों पर आकर विराेध शुरू कर दिया और अागजनी, पथराव तथा टकराव के बीच पुलिस की गोली से नौ लोग मारे गए और 49 घायल हो गए। इसके बाद राजधानी जयपुर में कर्फ्यू लगा दिया गया था।

घटनाक्रम को याद करते हुए राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल बताते हैं-संयुक्त विधायक दल गठित होने के बाद कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का सवाल ही नहीं उठता था, लेकिन प्रदेश के राज्यपाल डॉ. संपूर्णानंद ने बहुत ही अप्रत्याशित और लोकतंत्र की हत्या करने वाला कदम उठाया। उन्होंने चार मार्च 1967 को संयुक्त विधायक दल के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया उस समय के मद्रास राज्य का एक उदाहरण देकर सबसे बड़ी पार्टी के नाते कांग्रेस के मोहन लाल सुखाड़िया को मुख्यमंत्री पद की शपथ देेने के लिए बुला लिया। सबसे हैरानीजनक तो ये था कि कांग्रेस के विरोध में जो संयुक्त विधायक दल बना उसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय जनसंघ भी शामिल थे। संयुक्त विधायक दल में सबसे ज्यादा 48 विधायक स्वतंत्र पार्टी के थे। जनसंघ के 22 विधायक जीतकर आए थे।

जब शेखावत ने मधोक को चेताया-
पत्रकार सीताराम झालानी उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, जनसंघ के नेता भैराेसिंह थे। लेकिन जनसंघ के राष्ट्रीय नेता बलराज मधोक ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर दी, जिसके लिए केंद्र की कांग्रेस सरकार तैयार ही बैठी थी। इसे लेकर शेखावत ने मधोक को बहुत बुरा-भला कहा और यहां तक चेताया कि अाइंदा से राजस्थान के मामले में दखल दिया तो ठीक नहीं होगा।

संपूर्णानंद रुखसत हुए और नए राज्यपाल सरदार हुकुमसिंह आए तो उन्होंने भी वही किया-
डॉ. संपूर्णानंद इस बीच राज्यपाल पद से चले गए और उनकी जगह लोकसभा अध्यक्ष रह चुके सरदार हुकुमसिंह को नया राज्यपाल बनाया गया। हुकुमसिंह ने पहले दोनों पक्षों से विधायकों की सूची मंगवाई। इसके बाद दोनों सूचियों में जिन विधायकों का नाम था, उनसे अलग-अलग बातचीत की और सुखाड़िया को सरकार बनाने का न्योता दे दिया।

पुलिस गोलीकांड के लिए बना था बेरी आयोग-
मेघवाल बताते हैं कि उस समय पुलिस गाेलीकांड में मारे गए नौ लाेगों और बुरी तरह जख्मी हुए 49 जनों के प्रकरण को लेकर जस्टिस बेरी की अध्यक्षता में एक आयोग बना। आयोग ने कहा कि पुलिस ने ज़रूरत से ज्यादा गोलियां चला दी थीं।

राष्ट्रपति के सामने विधायकों की परेड कराई तो भी न्याय नहीं-
राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल बताते हैं- उस समय डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति थे। राज्य के संयुक्त विधायक दल के बहुमत से भी ज्यादा विधायकों की परेड राष्ट्रपति भवन में करवाई गई, लेकिन तब भी न्याय नहीं मिला। अगर उस समय राज्यपाल ने संयुक्त विधायक दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया होता तो महारानी गायत्री देवी या महारावल लक्ष्मणसिंह का मुख्यमंत्री बनना तय था।

दल बदलने वाले पहले विधायक थे रामचरण-
राज्य के राजनीतिक इतिहास में सबसे पहले दलबदल करने वाले विधायक जनसंघ के रामचरण थे। इसके बाद ही बाकी विधायकों ने दल बदला। उन दिनों दलबदल विरोधी कानून नहीं था।

हिंसा के बीच राष्ट्रपति शासन लगा इस बीच सुखाड़िया ने दल बदलवाकर बना ली सरकार
लोगों में गुस्सा उबल रहा था और व्यापक हिंसा की आशंका पर प्रदेश में 13 मार्च 1967 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। राज्यपाल संपूर्णानंद ने विस भंग करने के बजाय उसे निलंबित कर दिया। इस बीच सुखाड़िया ने दल-बदल करवाकर बहुमत तैयार कर लिया और 26 अप्रैल 1967 को उनके मुख्यमंत्रित्व में पूरे विधायक मंडल ने शपथ ली। प्रदेश की राजनीति के जानकार और उस समय राज्यपाल संपूर्णानंद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद रहने वाले बुजुर्ग पत्रकार विजय भंडारी बताते हैं-राज्यपाल ने उस समय गठबंधन को अपवित्र करार दिया था आैर उन सबके घोषणा पत्र अलग-अलग थे।