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April 25, 2024
अंतरराष्ट्रीय विशेष

क़तर के पर कतरने के पीछे की गुत्थी ! पढ़िए अमेरिका के इरादों को ज़ाहिर करता यह आर्टिकल

  • June 11, 2017
  • 1 min read
क़तर के पर कतरने के पीछे की गुत्थी ! पढ़िए अमेरिका के इरादों को ज़ाहिर करता यह आर्टिकल

मिडिल-ईस्ट के 54 मुमालिक के इत्तेहाद को अभी जुमा-जुमा आठ दिन भी नहीं हुआ था कि क़तर से खाड़ी के 6 मुल्कों ने अपने सारे रिश्ते-नाते मुनक़ता कर ये साफ़ कर दिया है कि इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान की तबाही पर ख़ामोशी की चादर ओढ़े रखने के पीछे का राज़ भी यही था |  सऊदी अरब, मिस्र, यूएई, बहरीन, लीबिया और यमन ने क़तर से अपने सारे डिप्लोमैेटिक, हवाई और सीमांत संपर्क ख़त्म कर ये साफ़ किया है कि वो अमरीका से आँख तरेरकर बात करना तो दूर ये अमरीका की उंगली के इशारे पर फ़ना हो जाने को तैयार हैं |

क़तर कभी एक ग़रीब मुल्क हुआ करता था, तेल और गैस के अकूत भण्डार ने इसे रातों-रात अमीर मुल्कों की फ़ेहरिस्त में ला खड़ा किया | खाड़ी के दूसरे मुल्कों को ये बात अखरने लगी, क़तर ईरान को लेकर भी नरम रहा है…तुर्रा ये कि ईरान से क़तर के ताल्लुक़ात मामा-भांजे वाले बन रहे थे, उधर क़तर की कोख से जन्म लेने वाला अल-जज़ीरा न्यूज़-चैनल अपने मुल्क में बादशाहत होते हुए भी सऊदी अरब, यूएई और दूसरे खाड़ी के देशों में नागरिक अधिकारों के हनन को लेकर कोशां था, ये बात भी सऊदी अरब को नागवार लग रही थी, अब क़तर का आईएसआईएस, अख़्वानुल मुस्लमीन यानि मुस्लिम ब्रदरहुड, अल-क़ायदा जैसी कथित चरमपंथी/दहशतगर्द तंज़ीमों को माली इमदाद फ़राहम कराने को हथियार बनाकर सऊदी अरब और खाड़ी के दूसरे 5 मुल्कों ने क़तर पर चढ़ाई कर दी है जिससे खाड़ी के मुल्कों में गंभीर अस्थिरता आने के इमकान उभरकर सामने आ सकते हैं |

मौजूदा सूरत-ए-हाल में क़तर के एक आलमी हवाई अड्डे पर अमरीकी सेना की 10 हज़ार टुकड़ियां तैनात हैं जो क़तर की ज़मीन का इस्तेमाल कर पिछले कई बरसों से इस ख़ित्ते में पनप रहे मुबय्यना दहशतगर्दी के ख़ात्मे को लेकर डटे हुए हैं | अभी हाल-फ़िलहाल में अमरीकी सदर-ए-जम्हूरिया डोनॉल्ड ट्रम्प सऊदी अरब के दौरे पर थे, इससे पहले ये क़तर भी हो आये हैं | अमरीका की सऊदी अरब और क़तर दोनों मुल्कों से बेहतर रिश्ते रहे हैं, अब ये बात समझ से परे है कि इसमें अमरीका की मंशा क्या है क्योंकि बिना इसके इशारे पर पत्ता नहीं खड़क सकता है |

इन सबके बीच भारत फंसा हुआ है क्योंकि क़तर में हमारे मुल्क से क़रीब साढ़े छह लाख लोग काम कर रहे हैं, क़तर की हालिया मैट्रो परियोजनाओं में भारत के इंजीनियरों और कामगार मज़दूरों का अहम रोल है | ऐसे में हिंदुस्तानी हुकूमत के सामने ये कश्मकश का मरहला है कि वो सऊदी अरब समेत इन छह मुल्कों के पाले में रहे या क़तर को अपना दोस्त क़ुबूल करे |  फ़िलहाल भारत के लिए ये एक मुश्किल घड़ी है क्योंकि क़तर के साथ ही सऊदी अरब, मुत्तहिदा अरब अमीरात (UAE), बहरीन में भी भारत के लाखों नागरिक काम कर रहे हैं, इसलिए भारत सरकार फ़िलवक्त तटस्थ मुद्रा में है।

क़तर का फ़िलिस्तीन की मुबय्यना चरमपंथी हुकूमत हमास को लेकर सॉफ़्ट-कॉर्नर रहा है, क़तर इस्लामी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता और मिस्र के अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी के पक्ष में खड़ा रहा है, क़तर के ईरान से गहराते जा रहे ताल्लुक़ात और इसकी वजह से सऊदी अरब समेत अन्य मिडिल-ईस्ट मुमालिक की ऑटोनॉमी पर मंडराते संकट के बादल, खाड़ी मुल्कों के पहले 24×7 न्यूज़-चैनल अल-जज़ीरा की बढ़ती लोकप्रियता और इस चैनल के ज़रिये खाड़ी के मुल्कों की अवाम के दिमाग़ पर असर डाल इस ख़ित्ते में जम्हूरियत के बीज रोपने की टोह, खनिज संपदा के दोहन से सिर्जित अकूत संपत्ति से क़तर का मज़बूत होता साम्राज्य, सऊदी अरब की मुस्लिम वहाबी-सलफ़ी पंथ के बरक़्स क़तर का अख़्वानुल मुस्लमीन यानि मुस्लिम ब्रदरहुड की तरफ़ खिंचता रुझान…ये सब ऐसे वजूहात हैं जो शायद क़तर के पर कतरने की वजह बने हैं |

इसके साथ ही मुझे लग रहा है कि शायद अमरीका द्वारा निर्मित असलहे-हथियारों में ज़ंग लग रहा है क्योंकि वक़्त लंबा होता जा रहा और अमेरिकी हथियारों की नुमाइश हो नहीं पा रही है, कोई ऐसा ‘शोशा’ मिल नहीं पा रहा है जिसकी ढाल पर अमेरिका मुस्लिम मुमालिक पर प्रहार कर सके | अमेरिका के आधुनिकतम हथियार ज़ंग लग कबाड़ी की दूकान की शोभा ना बढ़ाने लगें, इसके गोले-बारूद सड़-गल ना जायें | इसे खपाना तो ज़रूरी है, आपस में दरार पैदा कर माहौल बनाया जाये लड़ाई का…हो सकता है अमेरिका के समीकरण फ़िट बैठ जायें |

ख़ैर ! क़तर भी अपनी अना और ऐंठ को मुर्दार नहीं होने देना चाहता, इसने भी अपनी सीमाएं इन छह मुल्कों की सरहदों पर सील कर दी है, अपने हवाई अड्डों पर नाकेबंदी कस दी है और समुद्री पानी के रास्ते को भी बंद कर रखा है।

ये एक यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा रहेगा कि मिडिल-ईस्ट के 54 मुल्क जब एक प्लैटफ़ॉर्म पर आ रहे थे, दुनिया के दूसरे मुल्कों को खाड़ी के देशों से तेल, गैस, एलपीजी और दूसरे ईंधन की सप्लाई पर एक राय, एक क़ानून, एक नियम बनने के पूरे इमकान थे तो  आख़िर ये भसड़ डाली किसने ? और कौन चाहता है कि खाड़ी के मुल्कों के एक मंच पर आने की वजह से उसके सिर पर ख़तरा मंडराने लगे और बैनुल-अक़वामी सतह पर शांति हर घड़ी ख़तरे में पड़ी रहे | इसका रुझान हमें खोजना होगा, उस तह तक पहुंचना होगा कि ये तेल का खेल ना होता तो अमरीका अब तक अपनी घुँघरू की थाप पर खाड़ी के मुल्कों को नचा रहा होता |

– अमुवि के शोध छात्र आफाक अहमद के फेसबुक वाल से