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तीन तलाक : एक प्रतिगामी परंपरा का अंत ! जरुर पढ़ें ध्रुव गुप्त का यह आर्टिकल

  • August 22, 2017
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तीन तलाक : एक प्रतिगामी परंपरा का अंत ! जरुर पढ़ें ध्रुव गुप्त का यह आर्टिकल

देश के सर्वोच्च न्यायलय द्वारा तीन तलाक की प्रचलित अमानवीय प्रथा को असंवैधानिक घोषित करना ऐतिहासिक फैसला है। समस्या तलाक से नहीं, कुरान की गलत व्याख्या पर आधारित एक साथ तीन तलाक के एकांगी तरीके से थी। तलाक ख़ुद में कोई प्रतिगामी या अमानवीय विचार नहीं है। दांपत्य जीवन में कभी ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं जब पति-पत्नी का एक साथ रहना नामुमकिन हो जाता है। तलाक की प्रगतिशील अवधारणा मानवता को इस्लाम की देन है। असह्य परिस्थितियों में पहली बार कुरआन ने तलाक की व्यवस्था दी, लेकिन यह व्यवस्था वैसी तो बिल्कुल नहीं थी जैसी शरियत का हवाला देकर आज भारत सहित कुछ देशों में मुसलमानों ने लागू कर रखी है। क़ुरान ने तलाक की हालत में स्त्रियों की गरिमा, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए हैं। कुरान में तलाक को न करने लायक काम कहा गया है जिसे करने के पहले रिश्ते को बचाने की हर मुमकिन कोशिश, पति-पत्नी के बीच लगातार संवाद, दोनों के परिवारों के समझदार और हकपरस्त व्यक्ति द्वारा सुलह के प्रयासों की हिदायत है। इस पूरी प्रक्रिया को समय-सीमा में भी बांधा गया हैं। तमाम कोशिशें नाकाम साबित होने के बाद ही दोनो को एक दूसरे से अलग हो जाने की इजाज़त है। यहां तक कि शौहर की बददिमागी, ज़ुल्म और बेपरवाही की हालत में बीवी को भी खुला का अधिकार है। क़ुरान में एकतरफ़ा, एक ही वक़्त में या एक ही बैठक में तलाक देने की इजाज़त नहीं है। यहां हालत यह थी कि आमने-सामने तलाक बोलने तक की भी ज़रुरत नहीं थी। चिट्ठी, फोन, एस.एम.एस, व्हाट्सअप्प, विडियो कॉल पर भी तलाक होने लगे थे।
एक साथ तीन तलाक का नियम कुरान की व्यवस्था के खिलाफ़ और पुरुषवादी नज़रिए की उपज थी। दुनिया के लगभग तमाम धर्मों की तरह इस्लाम में भी धर्मगुरु और लगभग सारे मुल्ला-मौलवी पुरुष-वर्ग से आते हैं। औरतों का वहां कोई प्रतिनिधित्व है ही नहीं। वरना यह कैसे मुमकिन होता कि मर्द जब चाहे एक बार में तीन तलाक बोल या लिखकर अपनी बीवी और बच्चों को ज़िन्दगी के उनके हिस्से के सफ़र में अकेला और बेसहारा छोड़ दे। हाल के वर्षों में स्त्रियों के प्रति दृष्टि बदलने के साथ दुनिया के बहुत से इस्लामी देशों में में भी तीन तलाक के अन्यायपूर्ण रिवाज़ में संशोधन हुए हैं। सिर्फ अपने देश में इसे लेकर हठधर्मी थी।

बहरहाल अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ संघर्षरत सभी स्त्रियों को यह सफलता मुबारक़ !

-लेखक ध्रुव गुप्त पूर्व आईपीएस हैं |