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छात्र एवं शिक्षा

लोक अदालत ने डीएस कालेज की छात्रा को आगरा यूनिवर्सिटी से 7 साल बाद दिलाई डिग्री

  • December 13, 2018
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लोक अदालत ने डीएस कालेज की छात्रा को आगरा यूनिवर्सिटी से 7 साल बाद दिलाई डिग्री

अलीगढ़ । डीएस कॉलेज से उम्मीद लगाकर पीएचडी के ख्वाब देख रही होनहार छात्रा के सपने आगरा के डॉ. बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय की लचर व्यवस्था से चकनाचूर हो गए। 25 हजार रुपये फीस जमा हो चुकी थी। गेट की परीक्षा भी न दे सकी। इनके लिए एमएससी की डिग्री चाहिए थी, जिसे कॉलेज व विश्वविद्यालय सात साल बाद भी उपलब्ध नहीं करा सका, जबकि, निर्धारित शुल्क लेकर कई बार आवेदन करा लिए गए। छात्रा चक्कर ही काटती रह गई। हारकर स्थायी लोक अदालत में शरण ली। अदालत ने एक माह में डिग्री के साथ छात्रा को 50 हजार रुपये बतौर क्षतिपूर्ति देने के आदेश विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार को दिए हैं।

इगलास तहसील के गांव धनतौली निवासी रूपेंद्र कुमार की बेटी पायल वाष्र्णेय ने हाईस्कूल, इंटर टॉप किया था। 2003 में डीएस से बीएससी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसी कॉलेज से एमएससी (बॉटनी) व बीएड भी प्रथम श्रेणी में किया। छात्रा मंगलायतन विश्वविद्यालय से पीएचडी करना चाहती थी, आवेदन भी किया। 25 हजार रुपये फीस जमा कर दी। यहां बताया गया कि इसके लिए एमएससी की डिग्री चाहिए। तब छात्रा ने 19 दिसंबर-11 को 150 रुपये का चालान जमा कर डिग्री के लिए आवेदन किया, डिग्री नहीं मिली। जुलाई- 13 में विवि कर्मियों ने बताया चालान खो गया है। पांच जुलाई को पुन: चालान जमा करा लिया। इस बार भी डिग्री नहीं आई।

लोक अदालत में दायर की याचिका
शिकायत के मुताबिक 2014 में गेट की परीक्षा के लिए डिग्री की जरूरत हुई। 29 सितंबर को प्रॉविजनल डिग्री के लिए चालान जमा किया, ये भी नहीं मिली। 27 फरवरी- 15 को कुलपति के गोपनीय विभाग से डिग्री मिलने के आश्वासन पर भी छात्रा निराश रही। नौ अगस्त-16 को पुन: चालान भरा, फिर भी सफलता नहीं मिली। तब सिविल अधिवक्ता दिवाकर अग्रवाल के माध्यम से रजिस्ट्रार व कॉलेज प्राचार्य के खिलाफ याचिका दायर की।

तीन सदस्यीय पीठ में शामिल पूर्व जिला जज रियासत हुसैन, वरिष्ठ सदस्य शाजिया सिद्दकी, डॉ. मीना बंसल ने एक माह में डिग्री देने व छात्रा को 50 हजार का भुगतान करने के आदेश विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार को दिए हैं।