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 गौ रक्षा कहें या गौ क्रांति ? पढ़िए शुभम अग्रवाल का यह आर्टिकल                             

  • June 5, 2017
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 गौ रक्षा कहें या गौ क्रांति ? पढ़िए शुभम अग्रवाल का यह आर्टिकल                             

शुभम अग्रवाल

गौ माता की स्वतंत्र भारत देश में दयनीय स्थिति बेहद विचारणीय है अब गौ माता की सुरक्षा को लेकर एक ” गौ क्रांति” सी शुरू हो चुकी है। यह बड़ा शर्मनाक व निंदनीय तथ्य है कि गाय गोवध एवं मांस खरीद फरोख्त से हमारे देश की राजनीति पशुओं पर आधारित होती जा रही है। चुनावी मुद्दों में क्या और अन्य मुद्दे नहीं होते है जो गोवध को चुनावी मुद्दा बना लिया जाता है या कभी पशुओं की खरीद फरोख्त का मामला सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालय पहुँच जाता है। हमारी न्यायपालिका भी इस मुद्दे पर एक मत नहीं है और सबकी अलग अलग विचारधारा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारी न्यायपालिका पर भी राजनैतिक रंग चढ़ने लगा है और उसके फैसले भी राजनीति से प्रेरित होकर आने लगे हैं। अदालती फैसले के चलते आज केरल की सड़कों पर हिंसा व नफरत की आग फैली है। इस समय गोवध व पशुओं की खरीद फरोख्त का मामला सुर्खियों में चल रहा है और केन्द्र सरकार अधिसूचना भी जारी कर चुकी है। अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुये हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है कि अब तक ऐसा कोई नियम नहीं बना है जिसके आधार पर गोवध व माँस खाने वालों पर रोक लगाई जा सके।

दूसरी तरफ इस मुद्दे पर मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले मे केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक ही नहीं लगा दी है बल्कि यह भी कहा है कि कोई किसी के खाने की आदतों को तय नहीं कर सकता है। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि अधिसूचना या नये नियमों से कोई संवैधानिक उल्लंघन नहीं हुआ है। केरल उच्च न्यायालय व मद्रास उच्च न्यायालय के परस्पर विरोधी फैसलों के बाद राजस्थान उच्च न्यायालय ने गोवध पर अपनी राय देते हुये गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की सलाह दी गयी है।
सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालयों के एक ही मुद्दे पर दिये गये अलग- अलग फैसले इस बात के प्रतीक हैं कि न्यायपालिका में एकरूपता नहीं है जबकि भारतीय संविधान एक है जो पूरे देश में लागू होता है। हमारी न्यायपालिका भी इसी संविधान से बंधी हुयी है इसीलिए न्यायालय के फैसले का सभी सम्मान करते हैं। यह पहला अवसर है जबकि एक ही मुद्दे पर संवैधानिक न्यायालय अलग अलग राय देकर मामले को सुलझाने की जगह उलझाकर राजनैतिक दलों को राजनैतिक रोटियां सेकने का अवसर दे दिया गया है। देश मे केरल तमिलनाडु पश्चिम बंगाल कर्नाटक जैसे राज्यों में गोकशी करने पर अब तक कोई रोक नहीं थी।

केन्द्र सरकार की अधिसूचना के बाद गाय ही नहीं बल्कि अन्य पशुओं के वध व मांस बिक्री पर रोक लग गयी है। नये नियम के तहत पशुओं की खरीद बिक्री सिर्फ कृषि कार्य के लिये हो सकती है उन्हें काटकर उनका मांस बेचने के लिये नहीं हो सकती है। सरकार के नये नियमों से कटान व बिक्री पर रोक नहीं लगेगी बल्कि चोरी करने का मार्ग पुनः प्रशस्त हो जायेगा। वैसे हमारी संस्कृति जीवों पर दया करने की रही है और उनका वध करना पाप माना जाता है। हमें महात्मा गाँधी ने अहिंसा परमो धर्मः का पाठ पढ़ाया है और जैन धर्म का उदय भी इसी नारे को मूर्ति रूप देने के लिये हुआ है। यह बात सही है कि पशुओं के मांस को खाने की परम्परा आदिकाल से है तथा जहाँ पर भ्रष्टाचार अनाज पैदा नहीं होता है वहाँ पर लोग मजबूरी में मांस का भक्षण करते थे। आज मांस खाना मजबूरी नहीं बल्कि एक आदत बन गयी है। अब लोग शौकिया मांस खाने लगे हैं जबकि मांस खाना स्वास्थ्य के लिये हितकर नहीं माना गया है।चिकित्सक मांस न खाने की सलाह दे रहे हैं इसके बावजूद लोग बेधड़क मांस का सेवन कर रहे हैं। जहाँ तक बात गाय का मांस खाने की है तो गाय को काटकर उसके माँस को खाकर एक बार पेट भरा जा सकता है लेकिन उसे जिन्दा रखकर उसके दूध , गोबर , गोमूत्र से हम अपने पूरे जीवन को स्वस्थ बना सकते हैं। इसके बावजूद हमारे कुछ राजनेता और महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग गाय का माँस खाने में गर्व महसूस कर रहे हैं। आज गाय गोवध और माँस राजनीति का अंग बन गयी है और कुछ राजनीतिक लोग इससे राजनैतिक रोटियां सेकने लगे है जो दुर्भाग्य की बात है। यह अपना देश धर्मनिरपेक्ष है और इसमें लोग विविध संस्कृतियों व विचारधारा वाले लोग रहते है इसलिए उनके खानपान व रीति रिवाजों पर रोक लगाना उचित नहीं है। इसके बावजूद गाय जैसी बहुपयोगी आस्था से जुड़े पशु के वध पर रोक लगना उचित है।केरल तमिलनाडु पश्चिम बंगाल कर्नाटक जैसे राज्यों में जिस तरह से अल्पसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने का काम सड़कों पर शुरू हुआ है इसे भी उचित नहीं माना जा सकता है। पशु बलि की बात तो हमारे यहाँ होने की पुरानी प्रथा रही है लेकिन इस तरह नंगानाच करने की परम्परा कभी नहीं रही है ।

कई  सवाल आज भी जनता के दिमाग मे बैठे हुए है कि गौ माता की जो दयनीय स्थिति भारत में है क्या वह विचारणीय नही है ? क्या गौ माता पर राजनीति करना आवश्यक है ? क्या बिना राजनीति के गौ माता को राष्ट्रीय पशु या गौ सम्मान मिलना मुश्किल है ? आज समाज में आपने कई जगह पर लिखा देखा होगा ” गौ माता की जान बचाओ, गाय को राष्ट्रीय पशु बनाओ” लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है या जानने का प्रयास किया है या किसी केे पास इस बात का जवाब हैै कि गौ माता को राष्ट्रीय पशु कैसे बनाया जा सकता है उनकी सेवा करके, सम्मान करके, या राजनीति करके ?