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March 29, 2024
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फिल्म ‘कड़वी हवा’ का विशेष प्रीमियर होगा गुड़गांव में

  • June 1, 2017
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फिल्म ‘कड़वी हवा’ का विशेष प्रीमियर होगा गुड़गांव में

सामाजिक मुद्दे पर बनी हिंदी फीचर फिल्म ‘कड़वी हवा’ (डार्क विंड) की स्पेशल स्क्रीनिंग आज एसएम सहगल फाउंडेशन, गुरुग्राम के आडिटोरियम में की जा रही है जिसमें कृषि जगत एवं पर्यावरणविदों के अलावा सामाजिक कार्यों में लगे विशेष आमंत्रित सदस्य तथा किसानों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। पद्मश्री से सम्मानित फिल्म निर्देशक नील माधब पांडा फिल्म के विभिन्न पहलुओं पर उपस्थित विशेष आमंत्रित सदस्यों से चर्चा करने के लिए मौजूद रहेंगे। इस बार के 64वें नेशनल अवार्ड में सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने वाले फिल्म निर्देशक नील माधब पांडा की ताजा फिल्म ‘कड़वी हवा’ का विशेष तौर पर जिक्र (स्पेशल मेंशन) किया गया है। स्पेशल मेंशन में फिल्म की सराहना की जाती है और एक सर्टिफिकेट दिया जाता है। बॉलीवुड से गायब होते सामाजिक मुद्दों के बीच सूखाग्रस्त किसानों की समस्याएं और घटते-बढ़ते जलस्तर पर बनी कड़वी हवा की सराहना और सर्टिफिकेट मिलना राहत देने वाली बात है। फिल्म की कहानी दो ज्वलन्त मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है- जलवायु परिवर्तन से बढ़ता जलस्तर व सूखा। फिल्म में एक तरफ सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड है तो दूसरी तरफ ओड़िशा के तटीय क्षेत्र हैं। बुन्देलखण्ड पिछले साल भीषण सूखा पड़ने के कारण सुर्खियों में आया था। खबरें चली थीं कि अनाज नहीं होने के कारण लोगों को घास की रोटियाँ खानी पड़ी थीं और कई खेतिहरों को घर-बार छोड़कर रोजी-रोजगार के लिये शहरों की तरफ पलायन करना पड़ा था।

‘कड़वी हवा’ में मुख्य किरदार संजय मिश्रा और रणवीर शौरी ने निभाया है। अपने अभिनय के लिए मशहूर संजय मिश्रा एक अंधे वृद्ध की भूमिका में हैं जो सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड में रह रहा है। उनके बेटे ने खेती के लिये कर्ज लिया, लेकिन सूखे के कारण फसल अच्छी नहीं हो सकी और अब उसे कर्ज चुकाने की चिन्ता खाये जा रही थी। अन्धे बूढ़े पिता को डर है कि कर्ज की चिन्ता में वह आत्महत्या न कर ले, क्योंकि बुन्देलखण्ड के कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अन्धे बूढ़े पिता की तरह ही क्षेत्र के दूसरे किसान भी इसी चिन्ता में जी रहे हैं। दूसरी तरफ, रणवीर शौरी एक रिकवरी एजेंट है, जो ओड़िशा के तटीय इलाके में रहता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और उसे डर है कि उसका घर कभी भी समुद्र की आगोश में समा जाएगा। रिकवरी एजेंट लोन वसूलना चाहता है ताकि वह अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर ले जा कर सके। अन्धा बूढ़ा रिकवरी एजेंट से कर्ज माफी की गुजारिश करता है ताकि उसका बेटा आत्महत्या करने से बच जाए। शुरुआत में रिकवरी एजेंट उनकी एक नहीं सुनता है, लेकिन धीरे-धीरे वे एक-दूसरे की मजबूरियाँ समझने लगते हैं और आपसी सहयोग से जलवायु परिवर्तन के खतरों से पंजा लड़ाने की ठान लेते हैं।
बात सूखे की हो या ग्लोबल वार्मिंग की, इसके लिये जिम्मेदार कोई है और भुगत कोई दूसरा रहा है। खेत में फसल उगाने वाला किसान हो या समुद्र में मछली पकड़ने वाला मछुआरा-कोई भी ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार नहीं है, लेकिन झेलना उन्हें ही पड़ रहा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म चर्चा का विषय बनी हुई है और निर्देशक का कहना है कि यह हर किसी के दिल को छू जाएगी। फिल्म हिन्दी में बनी है और अब तक यह रिलीज नहीं हुई है लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कारों में इसकी विशेष चर्चा एवं अनुशंसा इसे विशेष बनाती है। फिल्म निर्देशक नील माधब पांडा इससे पहले पानी की किल्लत पर ‘कौन कितने पानी में’ फिल्म बना चुके हैं। वह उड़ीसा के जिस क्षेत्र से आते हैं, वहाँ पानी की घोर किल्लत है। यही कारण है कि पानी और पर्यावरण के मुद्दे उन्हें अपनी ओर ज्यादा खींचते हैं। फिल्म निर्देशक का कहना है कि यह फिल्म महज एक कपोल कल्पना नहीं है बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के खतरों को झेल रहे लोगों की दयनीय स्थिति को दर्शाती है। यह समाज में चेतना जगाने के लिए है। सहगल फाउंडेशन की संचार अधिकारी सोनिया चोपड़ा ने बताया कि इसका उद्देश्य कृषि एवं पर्यावरण तथा जलवायु संरक्षण के प्रति काम करने वाले प्रतिनिधियों को जागरूक करना है ताकि वे “कड़वी हवा” देखने के बाद पर्यावरण, पानी व जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विचार-विमर्श करेंगे तथा यह मुद्दे केन्द्र में आएँगे और आने वाली पीढ़ियों के प्रति अपने फर्ज़ निभाते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ जरूरी कदम उठाएंगे।