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रेप पर मौत की सजाः कैबिनेट के अध्यादेश को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी, कानून लागू

  • April 22, 2018
  • 1 min read
रेप पर मौत की सजाः कैबिनेट के अध्यादेश को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी, कानून लागू

नई दिल्ली | रेप पर मौत की सजा दिये जाने के कैबिनेट के अध्यादेश को अब राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल गई है। राष्ट्रपति ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिया है, जिसके बाद केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है। अब रेप के लिए नया कानून होगा। पॉक्सो एक्ट में संशोधन किया जाएगा। आपको बता दें कि उन्नाव गैंगरेप और कठुआ में बच्ची से दुर्दांत दुष्कर्म व हत्या के बाद उपजे व्यापक जनाक्रोश के मद्देनजर सरकार ने शनिवार को 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म करने वाले दोषियों को मौत की सजा को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की हुई बैठक में संबंधित अध्यादेश पर मुहर लगाई गई। आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश, 2018 में आईपीसी और साक्ष्य अधिनियम कानून, आपराधिक कानून प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) तथा पॉक्सो (बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण कानून) में संशोधन कर ऐसे अपराध के दोषी को मौत की सजा से दंडित करने के नए प्रावधान जोड़े गए हैं। अध्यादेश में महिलाओं से रेप करने के मामले में न्यूनतम सजा को सात वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया और अधिकतम सजा उम्रकैद तक बढ़ा दी गई। इसका मतलब है कि दोषी को पूरी जिंदगी जेल में बितानी पड़ सकती है। वहीं,16 वर्ष से कम की उम्र की लड़की से दुष्कर्म के आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं दी जाएगी।

– बच्चियों से दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें गठित की जाएंगी
– मामलों में पीड़ितों का पक्ष रखने के लिए राज्यों में विशेष लोक अभियोजकों के नए पद सृजित होंगे
– वैज्ञानिक जांच के लिए सभी पुलिस थानों और अस्पतालों में विशेष फॉरेंसिक किट मुहैया कराई जाएंगी
– रेप की जांच को समर्पित पुलिस बल होगा, जो समय सीमा में जांच कर आरोप पत्र अदालत में पेश करेगा
– क्राइम रिकार्ड ब्यूरो यौन अपराधियों का डेटा तैयार करेगा, इसे राज्यों से साझा किया जाएगा
– पीड़ितों की सहायता के लिए देश के सभी जिलों में एकल खिड़की बनाया जाएगा।

– 14 नवंबर 2012 को ‘द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज (पॉक्सो) एक्ट लागू हुआ।
– 18 साल से कम उम्र के बच्चों व किशोरों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
– पहली बार कानून में यौन उत्पीड़न के विभिन्न स्वरूपों को परिभाषित किया गया। बच्चों की कस्टडी के दौरान पुलिस व कर्मचारियों की ओर से किए गए उत्पीड़न के लिए भी सख्त प्रावधान किए गए।

– 15 मिनट पर एक बच्चा देश में यौन अपराध का शिकार होता है
– 500 फीसदी इजाफा हुआ बच्चों के खिलाफ अपराध में गत एक दशक में
– 50% मामले केवल उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में दर्ज

– घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस या बाल पुलिस प्रकोष्ठ के अधिकारी मामले को दर्ज करेंगे। 24 घंटे के भीतर इसकी जानकारी बाल कल्याण
समिति, विशेष अदालत को देनी होती है।
– किसी भी व्यक्ति, होटल, मीडिया को बाल पोर्नोग्राफी की जानकारी होने पर उसकी सूचना पुलिस को देनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उसे भी छह
महीने की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकता है। गलत सूचना देने पर भी यही सजा।
– पीड़ित के मनपसंद जगह पर पुलिस की महिला अधिकारी सादे कपड़े में बयान दर्ज करेगी। इस दौरान उसके माता-पिता या भरोसेमंद साथ रहेंगे।
– पॉक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई राज्य सरकार की अनुशंसा पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की ओर से गठित विशेष अदालत में होगी।
राज्य सरकार विशेष अभियोजकों की भी नियुक्ति कर सकती है।

– कानून की 39वीं धारा के तहत राज्य सरकार न्यायिक प्रक्रिया के दौरान बच्चों की मदद करने के लिए एनजीओ, पेशेवरों और विशेषज्ञों के लिए दिशा
निर्देश तैयार कर सकती है।
– 40वें अनुच्छेद के तहत नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट (एनसीपीसीआर) और राज्यों के आयोग को प्रावधनों के क्रियान्वयन की
निगरानी के लिए अधिकृत करता है।

सजा
– दुष्कर्म का दोषी पाए जाने पर न्यूनतम सात 10 साल कैद और अधिकतम उम्रकैद के साथ जुर्माना
– बाल पोनोग्राफी के दोषी पाए जाने पर पांच साल कैद, अपराध दोहराने पर सात साल की कैद
– यौन उत्पीड़न (दुष्कर्म नहीं) करने पर तीन साल जेल, इसके बढ़ाकर पांच साल तक किया जा सकता

दिल्ली की भयावह तस्वीर
– 20 फीसदी 5 से 9 वर्ष के बच्चे किसी न किसी यौन उत्पीड़न के शिकार
– 3 वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध में 34 फीसदी का हुआ इजाफा
– 96फीसदी मामलों में अपराध करने वाला परिवार का ही जानकार
– 76फीसदी लोग भी मानते बच्चों को घर के आसपास ही सबसे अधिक खतरा !