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March 28, 2024
राष्ट्रीय साहित्य

हँसना जरूरी है, ईटिंग मनी, नो पापा……….!

  • September 2, 2018
  • 1 min read
हँसना जरूरी है, ईटिंग मनी, नो पापा……….!

सरकार बहुत शाणी है. पब्लिक उससे ज्यादा शाणी है और बिज़नेसमैन परम शाणे हैं.
सरकार ने ज्यादातर बिज़नेस चलाना बंद कर दिया पर बिज़नेसमैन लोगों ने सरकार चलाना बंद नहीं किया.सरकार ने बिज़नेस करना छोड़ दिया बहुत पहले कि सचमुच के बिज़नेसमैन लोगों से कंपटीशन में टिक नहीं पाती थी. सरकार बहुत पहले ब्रेड बनाती थी-माडर्न ब्रेड.प्राइवेट सेक्टर के बिज़नेसवाले- ब्रेड वाले सरकार को हरा देते थे. सरकार ने ब्रेड बनाना बंद कर दिया. एक जमाने में सरकार मारुति कार तक बनाती थी फिर सरकार ने कार का धंधा भी छोड़ दिया.सरकार ने बिज़नेस चलाना बंद कर दिया पर बिज़नेसमैन लोगों ने सरकार चलाना बंद नहीं किया.
सरकार ने नोटबंदी की. समझ रही थी कि बहुत काली रकम अंदर कर रखी है बिज़नेसमैन लोगों ने, 500-1000 के नोट बंद होंगे तो बिज़नेसमैन लोगों को ये नोट जमा कराते वक्त बताना पड़ेगा कि कहां से आये. सरकार समझ रही थी कि बहुत से नोट वापस जमा न होंगे.
कहां गया काला धन?अब पता चला कि लगभग सारे के सारे नोट वापस जमा हो गये. भारतीय बिज़नेसमैन ने बता दिया ,भारतीय कालेधन वाले ने बता दिया-करेंसी का रंग सिर्फ एक ही है सफेद. काला धन होता ही नहीं है. सरकार नासमझ है जो समझती है कि काला धन होता है और उसे निकालने के प्रयास भी समय-समय पर करती है.बल्कि कई बार तो सरकार इतनी नासमझ लगती है कि उसे लगता है कि सरकार भी होती है. जबकि वह होती नहीं है. होती है तो इतनी भोली होती है, जितनी शोले फिल्म की बसंती, जो वीरु नामक बदमाश के हाथों कई मौकों पर बेवकूफ बनती रहती. वैसे बसंती से तुलना करना बेकार है, बसंती भी वीरु की बदमाशी पकड़ लेती थी. सरकार ना पकड़ पायी. सारी रकम वापस जमा हो गयी.
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क्या नासमझ थी सरकार?
कैसे, कैसे, कैसे. कारोबारियों के कर्मचारियों-सत्तो, बत्तो,झंगरु, मंगरु सबने कुछ कुछ रकम वापस अपने खाते में जमा करा दी. सब सफेद सब सफेद. सत्तो बत्तो ने बाद में लाख निकाल कर के पचास हजार अंदर किये पचास सेठजी को वापस कर दिये.गलत बात है, बहुत गलत बात है, ये बात प्राइवेट स्कूल का एक टीचर मुझसे कह रहा था.मैंने उसे याद दिलाया-बेटे तीस हजार रुपये की रसीद पे साइन करते हो, तीस लेकर पंद्रह अपने लालाजी को वापस करते हो ना. तुम भी झंगरु ही हो. औकात में रहो.सरकार औकात में आ गयी है. समझ गयी है कि काला धन होता ही नहीं है.
रकम स्विस में, भाई एंटीगुआ में
रुपया गिर रहा है–
भाई, अफवाह है यह, रुपया गिर रहा है पर तेरे यहां ना गिर रहा है. रुपया गिर रहा है टाटा के यहां, रुपया गिर रहा है मारुति कार बनानेवालों के यहां. टाटा वालों का शेयर टाटा कंसलटेंसी एक साल मं 66 प्रतिशत बढ़ गया. पहले टाटा वाले एक डॉलर का 64 रुपये कमाते थे अब एक डालर में 71 मिल रहे हैं. एक डालर के बदले ज्यादा रुपया गिर रहा है टाटा वालों के यहां और कहां रुपया गिर रहा है बता.
सब जगह खबर है रुपया गिर रहा है.भाई, रुपया गिर रहा है इनफोसिसवालों के यहां. उनका शेयर एक साल में 57 प्रतिशत के आसपास उछल गया. उनका भी वही हाल है, एक डालर से ज्यादा रुपये गिर रहे हैं.रुपया सब जगह गिर जाता है, हमारे यहां क्यों ना गिरता. हमारे यहां तो आधे घंटे की बारिश में मकान गिर जाता है.भाई, रुपया गिराना हो टाटा बन जा. इनफोसिसवाला बन जा.पर यह कैसे बनूं.भाई मैंने तो रुपया गिराने की नीति बता दी है. मैं टॉप एक्सपर्ट हूं, सिर्फ नीतियों की बात करता हूं. नीतियां लागू कैसे हों, यह देखना मेरा काम ना है. या एक काम और कर ले अपना रुपया स्विस बैंक में गिराकर तू खुद एंटीगुआ में गिर जा, चौकसी की कसम. मजा आ जायेगा.
पर कैसे, कैसे.
भाई, मैं टाप एक्सपर्ट नीतियों की बात बता दी है मैंने. इन पर अमल देखना मेरा काम ना है.
नीरव मोदी ने भारत को कब कहा टाटा
क्या जीडीपी के बारे में सब कुछ जानते हैं?
जीडीपी ग्रोथ–
सरकार कह रही है कि जीडीपी बढ़ गयी 8.2 प्रतिशत. समझ तेरा विकास हो लिया 8.2 प्रतिशत.भाई मेरी ना बढ़ी. मुझे तो उतने के उतने ही दे रहा है सेठ.ऐसे ऑटोमेटिक ना बढ़ती सबकी. बढ़ानी पड़ती है. पुरुषार्थ करना पड़ता है. देख नीरव मोदी, चौकसी कर गये पुरुषार्थ. अपनी जीडीपी बढ़ा गये 78978787877 परसेंट, तुझसे 8 प्रतिशत ना बढ़ रही है.भाई मेरी क्यों नहीं बढ़ती.
ऐसे सबकी आटोमेटिक ना बढ़ती. देख मारुति कंपनी के शेयर साल भर में 18 परसेंट से ज्यादा कूद गये. तू 8 परसेंट पर अटका हुआ है. तू भी मारुति कंपनी जैसी कारों के धंधे में लग. मुल्क में घणी गरीबी है पर घणी डिमांड है कारों की. खेती की जीडीपी पांच प्रतिशत मुश्किल से बढ़ती है. मारुति कार वाले की 18 प्रतिशत बढ़ जाती है.
भाई पर मैं मारुति कार बनाने के धंधे में कैसे उतर सकता हूं.
टॉप एक्सपर्ट नीतियों की बात बता दी है मैंने. इन पर अमल देखना मेरा काम ना है.
झटकों के बावजूद तेज़ी से क्यों बढ़ रही है अर्थव्यवस्था
‘अर्थव्यवस्था आंकने का बेतुका पैमाना है जीडीपी’
पेट्रोल के भाव लगातार बढ़ रहे हैं. अच्छा है पब्लिक का ध्यान तब ही कयामत की एक रात और नज़र सीरियल की डायन से हटेगा.
भाई चलना मुश्किल हो रहा है. आप डायन की बात रहे हो.
महंगाई ज्यादा होती है तो टीवी चैनल सुधर जाते हैं. महंगाई की खबरें दिखाते हैं, वरना तो वही दिखा कर पका मारते हैं कि बगदादी 98798789787 बार मर गया और किम जोंग सुबह उठते ही बीस एटम बम छोड़ देगा और प्रियंका चोपड़ा का ब्वॉय फ्रेंड उससे 11 साल पांच दिन छोटा है.
भाई तो क्या पेट्रोल महंगा इसलिए हो रहा है कि हम टीवी पर सही खबरें देख सकें.
हां, इसलिए महंगा हो रहा है और पेट्रोल पंप वालों के अच्छे दिन भी आ गये हैं. अच्छे दिन कार बनानेवालों और पेट्रोल बेचनेवालों के बहुत आसानी से आ जाते हैं. तू भी जुगाड़ ला पेट्रोल पंप. फिर मौज में रहना.
भाई पेट्रोल पंप कैसे जुगाड़ा जाता है.
टॉप एक्सपर्ट नीतियों की बात बता दी है मैंने. इन पर अमल देखना मेरा काम ना है.
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अगर पेट्रोल GST के दायरे में आ जाए तो…
साभार–अलोक पौराणिक |
(लेखक दिल्ली यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)