नई दिल्ली | अपने शहर से निकलते ही हरियाली शुरू हो जाती है और अनायास ही हम हरे-भरे खेतों,पेड़ो,तालाबों में मानो खो से जाते हैं तथा मंजिल की दूरी लगातार घटती जाती है कि हमें पता ही नहीं चलता की हम कितने घंटे का सफ़र करके आ रहे हैं|अपनी मंजिल के रास्ते में हमें अनेकों स्थान अपनी ओर आकर्षित करते हैं,लेकिन समयाभाव के कारण हम हर स्थान पर रुक नहीं पाते और फिर कभी रुकेंगे कहकर आगे बढ़ जाते हैं|ये ऐसे कौन से स्थान होते हैं जो हमें रोकने का प्रयास करते हैं ? ये,वे स्थान होते हैं जो प्राकृतिक-सौन्दर्य को समेटे हुए होते हैं परन्तु आज मानव को प्रकृति से अधिक लगाव नहीं रह गया है अपनी आर्थिक-आवश्यकताओं के आगे उसे हरे-भरे नहीं,बल्कि कंक्रीट के ऊँच-ऊँचे जंगल अधिक लाभकारी लग रहे हैं|
जब निराशा के बादल चहुँ ओर घिर जाते हैं तो समय की करवट आशा का मार्ग भी बना देती है,आज प्रकृति से दूर होते हुए मानव को अनेकों ख़तरनाक बीमारियों ने घेर लिया है कि उनके नाम भी नये हैं जो पहले कभी किसी ने नहीं सुने होंगे,अत: समय रहते हमें भी प्रकृति की ओर लौटने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए,पर्यावरण संरक्षण की महति जरूरत को हमसे अधिक दूसरे देशों ने पहले जान लिया है और प्रयास भी शुरू कर दिए हैं,आज भारतवर्ष में भी उच्च-मध्यम वर्ग व् पैसे वाले लोग अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर प्रकृति की गोद में जाना नियमित कर रहे हैं तथा इसका प्रमाण भी है कि अपने घरेलू-पर्यटक भी अब सैर-सपाटे के लिए हरे-भरे जंगल या झील,पहाड़ों का चुनाव कर रहे हैं यह एक अच्छा संकेत है,हमें भी,विशेष कर युवाओं को भविष्य की जरूरतों के हिसाब से अपने चारों ओर बचे जंगल-झीलों को बचाना होगा और अपने घरेलू-पर्यटकों की आवश्यकतानुसार वहां की व्यवस्था निर्मित करनी होगी|
देश की सरकारें अभी ऊपरी तौर पर दिखावा तो कर रहीं हैं,परन्तु धरातल पर केवल खानापूर्ति ही है,जो कि एक बड़ी सच्चाई है|मेरा यह लेख इसी बात को केन्द्रित करते हुए है कि जब युवाओं का संगठन बन जायेगा और मांग करेगा कि हमें क्या चाहिए और क्या नहीं,जब सरकारें भी वही कार्य करेंगी,ऐसा मेरा विस्वास है|
आज इन्टरनेट के युग में आप विदेशों के रंगों को भी देखिये,मैं हैरान रह जाता हूँ कि छोटे-छोटे देश जिनके यहाँ कोई ढंग की वनस्पति भी नहीं है वे देश सिमित संसाधनों में भी “ईको-टूरिज्म” को आधार बना कर रोजगार चलाने में लग गए हैं और हम है कि किस प्रलय का इंतजार कर रहे हैं|
मैं,एक बार पुनः कहना चाहूँगा कि देश के प्राकृतिक-पर्यावरण को बचाईये और “ईको-टूरिज्म” को खोजिये,रोजगार करने के साथ,रोजगार दाता भी जरूर बनेंगे|(लेखक-रंजन राना,आप व्यवस्था-दर्पण समूह से भी जुड़े हैं)