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भतीजे (अखिलेश) को बुआ (मायावती) की नायाब ईदी, समाजवादियों को जरूर पढ़ना चाहिए यह आर्टिकल-

  • June 5, 2019
  • 1 min read
भतीजे (अखिलेश) को बुआ (मायावती) की नायाब ईदी, समाजवादियों को जरूर पढ़ना चाहिए यह आर्टिकल-

सचमुच, ये ईदी नायाब और बेशक़ीमती है । मुंह बोली बुआ ने अपने भतीजे को सही वक्त और मौक़े पर एक बड़े सबक़ की ईदी दी है। दूसरों से जुड़ने से पहले अपनों से ना टूटने की नसीहत दी है। खुद का परिवार तोड़कर दूसरे के परिवार से जुड़ने के नुकसान से वाक़िफ किया है। अपने खून के रिश्तों से.. जड़ों से और शाखाओं से जुड़े रहने का अप्रत्यक्ष ज्ञान बेशकीमती ईदी है। जो अपने परिवार के रिश्तों को धैर्य, संयम और समझौते की क़ूबत से बचा लेगा वो ही नये रिश्ते बनाने के क़ाबिल है।

अखिलेश यादव कमजोर पड़ गये हैं। जनाधार मे भी सीटों में भी और पिता-चाचा के सपोर्ट में भी। स्वार्थ के पहियों से चलने वाली सियासत कमजोर से दूरी बना ले तो ताजुब की बात नहीं। ऐसे में बसपा कमजोर सपा से गठबंधन के रिश्ते का बोझ क्यों ढोयेंगी ! भतीजे अखिलेश से अलग होने के लिए मुंहबोली बुआ मायावती ने सही समय चुना।

https://youtu.be/XiU6JwozN9I

इम्तिहान में पास होने के लिए त्यागा और संयम में विजय प्राप्त करने के जश्न को ही ईद कहते है। ईद से पहले रमजान के रोज़े संयम,त्याग और धैर्य सिखाते हैं। सियासत मे भी ये खूबियां जरूरी हैं। अखिलेश यादव में धैर्य और सयम होता.. समझौते का माद्दा होता तो उनके चाचा और पिता उनकी ताकत होते। वो पूरी तरह से साथ होते तो शायद सपा का बेस वोट बैंक नहीं खिसकता।

राजनीतिक रिश्ता तोड़कर बसपा सुप्रीमों बुआ मायावती ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से सियासी दूरी बनाकर ईदी रूपी बड़ी सीख दी है। अखिलेश यादव अपनी बुआ कि इस अप्रत्यक्ष नसीहत का पालन कर लें तो शायद सबकुछ ठीक हो जाये। अखिलेश यादव का चाचा शिवपाल यादव और पिता मुलायम सिंह यादव सेे खून का रिश्ता ही नहीं ये लोग उनके राजनीतिक गुरु भी हैं। पिता की गुजारिश मान कर चाचा की घर वापसी करवाकर अखिलेश यादव उनको सम्मान देकर टूटे रिश्तों को जोड़ सकते हैं। पार्टी का बिखरा जनाधार समेट सकते हैं। मुलायमवादी और शिवपालवादी एकबार फिर समाजवादियों को एक छतरी के नीचे आकर समाजवादी पार्टी को मजबूत कर सकते हैं।

https://youtu.be/KgxEe2Bt4rU

ईद की चांद रात वाले दिन सपा से किनारा करने वाले बसपा के तल्ख़ फैसले को अखिलेश यादव बुआ मायावती की ईदी समझें। ये कड़वी ईदी अपनों से जुड़ने की मिठास का सबब बन सकती है। और फिर सख्त वख्त वाले रोजों का दौर खत्म करके खुशियों के द्वार पर सफलतायें दस्तक दे सकती हैं।
-लेखक नवेद शिकोह यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं ।