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उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय

सवर्णों को आरक्षण का फैसला आरक्षण के खात्मे की मनुवादी साजिश : रिहाई मंच

  • January 9, 2019
  • 1 min read
सवर्णों को आरक्षण का फैसला आरक्षण के खात्मे की मनुवादी साजिश : रिहाई मंच

लखनऊ । सवर्ण आरक्षण के जरिए सामाजिक न्याय और संविधान पर हमले के खिलाफ अंबेडकर प्रतिमा जीपीओ हजरतगंज, लखनऊ में सामाजिक-राजनीतिक संगठानों ने विरोध प्रदर्शन किया। सभी ने एक स्वर में कहा कि सवर्णों को आरक्षण दिए जाने का फैसला जुमला नहीं, संविधान, सामाजिक न्याय पर बड़ा हमला है। यह आरक्षण के खात्मे की मनुवादी साजिश है। इसे बर्दाशत नहीं किया जाएगा। नरेन्द्र मोदी की बधाई ने सामाजिक न्याय के पक्षधर राजनीतिक दलों के विश्वासघात को साफ कर दिया जिसे अवाम माफ नहीं करेगी। सरकार 2 अपै्रल के भारत बंद को भूले नहीं अगर फैसला वापस नहीं लेती तो अवाम सड़कों पर उतरेगी।

https://youtu.be/KbRYnTrwisg

वक्ताओं ने कहा कि आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है। आरक्षण की अवधारणा भागीदारी, राष्ट्र निर्माण और लोकतंत्र को मजबूत करती है जो ऐतिहासिक और सामाजिक रुप से पिछड़े बहुजनों को प्रतिनिधित्व देती है। सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केन्द्र सरकार का फैसला संविधान विरोधी है। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद बाबा साहेब भीमराम अंबेडकर के सपनों के भारत के संविधान को बदलने की हर संभव कोशिश की है। आरक्षण का यह बदलाव उसके खात्मे की तैयारी है। सत्ता व शासन की संस्थाओं में पहले से ही सवर्णों की भागीदारी आबादी के अनुपात से कई गुणा ज्यादा है। इसलिए सवर्णों को आरक्षण देना सत्ता-शासन की संस्थाओं में उसके वर्चस्व को बनाए रखने की गारंटी की कोशिश है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यह शासन-सत्ता व शैक्षणिक संस्थाओं में भागीदारी व प्रतिनिधित्व के अवसरों की संवैधानिक व्यवस्था के खात्मे की तैयारी है।

https://youtu.be/rjX2Nbe6b5c

आरक्षण गरीबी उन्मूलन व रोजगार गारंटी कार्यक्रम नहीं है। सवर्णों के गरीबी उन्मूलन के लिए आर्थिक विषमता बढ़ाने वाली पूंजीवादी नई आर्थिक नीति का खात्मा जरूरी है। गरीबी उन्मूलन का जवाब आरक्षण नहीं है। केन्द्र सरकार का फैसला मनुवादी और बहुजन विरोधी है। वक्ताओं ने मांग की कि बहुजनों को सभी क्षेत्रों में संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व की गारंटी के लिए यह दायरा उनकी संख्या के आधार पर होना चाहिए पर जातिगत जनगणना पर सरकार चुप्पी साधे हुए है। न्यायपालिका से लेकर निजी क्षेत्र में यह विषमता जगजाहिर है। सवर्ण आरक्षण के पक्ष में खड़े होने वाले सामाजिक न्याय के नेताओं को बहुजन समाज माफ नहीं करेगा। यह किसी जाति का विरोध नहीं बल्कि उस वर्चस्ववादी मनुवादी माॅडल का विरोध है जो भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रुप में नहीं स्वीकारता। सदन में सामाजिक न्याय का पक्षधर होने का दावा करने वाले विपक्ष की भूमिका ऐसी थी जैसे कि आरक्षण पाने वाला समाज एक तबके का शोषण कर रहा हो और उसे भी आरक्षण देकर वह जैसे पाप से मुक्ति की कामना कर रहा हो। शोषितों-वंचितों के हक-हूकूक की लड़ाई राजनीतिक दलों की मोहताज कभी नहीं रही। उसने जो भी अधिकार पाए हैं कुर्बानियां के बूते। मुस्लिम आरक्षण को धर्म आधारित आरक्षण और आरक्षण पचास फीसदी ज्यादा नहीं हो सकता है की बात करने वाली भाजपा बताए कि किस आधार पर वह 10 प्रतिषत आरक्षण की बात कह रही है। आर्थिक अस्थिरता और विकराल होते रोजगार के संकट के दौर में सार्वजनिक उपक्रमों की मजबूती पर बात होनी चाहिए।

https://youtu.be/cHcAhQB6H_c

धरने में रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डेय, जमीयतुल कुरैशी उत्तर प्रदेश संयोजक शकील कुरैशी, यादव सेना अध्यक्ष शिवकुमार यादव, आॅल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज संयोजक नाहिद अकील, पिछड़ा समाज महासभा के अध्यक्ष एहसानुल हक मलिक, शिवनारायण कुशवाहा, रविंदर कुमार, सृजनयोगी आदियोग, उम्मीद की संयोजक हुसन आरा, ह्यूमन राइट वाच के अमित अंबेडकर, राबिन वर्मा, शाहरुख अहमद, रविश आलम, तनवीर अहमद, कारवां अध्यक्ष विनोद यादव, कमर सीतापुरी, मो0 आफाक, इंसानी बिरादरी के वीरेन्द्र कुमार गुप्ता, बांकेलाल यादव, महिल शहबाज, आजाद शेखर, जीतेन्द्र कुमार, स्वामी शैलेन्द्र नाथ, केके शुक्ला, मो0 गुफरान, देवेष सिंह यादव, नासिर अली, जज सिंह अन्ना, यादव सेना के जगन्नाथ यादव, आषीश यादव, कृष्ण कुमार यादव, बिपिन यादव, अंकित यादव, आलोक यादव, नीरज कुमार यादव, सिकंदर शेख हुसैनाबाद, जाहिद, अजीजुल्ल हसन आदि शामिल रहे ।