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पेरियार के विचार इस दौर में और अधिक प्रासंगिक, रिहाई मंच ने जन-जन तक पहुंचाने का लिया संकल्प

  • September 18, 2019
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पेरियार के विचार इस दौर में और अधिक प्रासंगिक, रिहाई मंच ने जन-जन तक पहुंचाने का लिया संकल्प

लखनऊ। ई.वी.रामास्वामी नायकर “पेरियार” की 140वीं जयंती रिहाई मंच कार्यालय पर मनाई गई। बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की 11वीं बरसी पर 19 सितंबर को ‘संवैधानिक अधिकारों पर बढ़ते हमले’ के खिलाफ रिहाई मंच यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में ढाई बजे से सेमिनार करेगा। पूर्व न्यायधीश बीडी नकवी और मानवाधिकार नेता रवी नायर मुख्यवक्ता होंगे।

वक्ताओं ने अपनी बात रखते हुए कहा कि पेरियार के विचारों पर चलकर भारत को आडम्बर एवं अंधविश्वास मुक्त किया जा सकता है। ज्योतिबा फुले, पेरियार और अम्बेडकर ने अंधश्विास, आडंबर, धर्मांधता मुक्त और समानता पर आधारित आधुनिक समाज के विचारों की नींव डाली और विपरीत परिस्थितियों में जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। आज जब समाज से इन्हीं बुराइयों के उन्मूलन का अभियान चलाने के अपराध में कालबुर्गी, डाभोलकर, पांसरे, गौरी लंकेश जैसे तर्कवादियों की हत्या कर दी जाती है और वैज्ञानिकता की बात करने वालों के खिलाफ एक बड़ा खेमा खुले आम हिंसा की धमकी देता है, संसद मार्ग पर संविधान की प्रतियां सरेआम जला दी जाती हैं। सत्ता में बैठे नेता मंत्री संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ जातीय श्रेठता के गुन गाते हैं। इस संदर्भ में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला का बयान कि ‘ब्राह्मण जन्म से ही श्रेष्ठ होता है’ से संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की मानसिकता और उनके भावी इरादों को समझा जा सकता है।

अफसोस की बात यह है कि जिस समाज को इन महान विभूतियों ने गुलामी की ज़ंजीरों से मुक्त कराने के लिए पूरा जीवन लगा दिया, भाजपा और संघ ने मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ दिलों में नफरत पैदा करके भ्रमजाल में फंसा लिया है और उन्हीं के सहयोग और समर्थन से अल्पमत में रहते हुए भी सत्तासीन हैं। इससे न केवल बहुसंख्यक समाज के अधिकारों को छीना जा रहा है बल्कि यह वर्ग उनकी मूलभूत समस्याओं से जुड़े नागरिक समानता, गरीबी उन्मूलन, रोज़गार, स्त्री सुरक्षा, लैंगिक समानता पर कुठाराघात जैसे मुद्दों से ध्यान भटका कर उन्हें भावनाओं में बहाने में सफल हुआ है। इसका खामियाज़ा आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ेगा।

आज ब्रम्हणवादियों ने राष्ट्रवाद और धार्मिकता की अफीम खिलाकर वर्ण व्यवस्था जैसे मनुवादी विचारों को आगे बढ़ाया है बल्कि बहुसंख्यक समाज (पिछड़ा और दलित) के नवजवानों को मॉब लिंचिंग, गोरक्षा के नाम पर हिंसा आदि जैसे जाल में फंसाकर शिक्षा और समृद्धि के मार्ग से कोसों दूर कर दिया है। इस समाज की शिक्षा का बजट आवंटन आधे से भी कम कर दिया गया है। दूसरी ओर बहुसंख्यक समाज में अंतर्जातीय द्धंद उत्पन्न कर उन्हें आपस में लड़ाने बांटने का काम भी किया जा रहा है ताकि वे अपने हक हकूक के लिए भविष्य में कोई साझा संघर्ष के बारे में सोच भी न सकें। बहुसंख्यक समाज को अपनी पहचान और मान-सम्मान को कायम रखते हुए विकास पथ पर आगे बढ़ना है तो उन्हें इन साज़ि़शों को समझना होगा। इन हालात में पेरियार के विचारों की प्रासंगिकता बहुत बढ़ जाती है और उसे जन–जन तक पहुंचाने की प्रतिबद्धता की पहले से कहीं अधिक ज़रूरत है।

संगोष्ठी में रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, नागरिक परिषद् के राम कृष्ण, ज़ैद फारूकी, शकील कुरैशी, वीरेन्द्र गुप्ता डॉ ऍम.डी.खान, राजीव यादव, रोबिन वर्मा, शम्स तबरेज, गोलू यादव, मसीहुद्दीन संजरी, बांके लाल यादव, शामिल रहें |