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‘AAP’ पहुंची जनता की अदालत, खुली चिट्ठी हो रही वायरल

  • January 22, 2018
  • 1 min read
‘AAP’ पहुंची जनता की अदालत, खुली चिट्ठी हो रही वायरल

नई दिल्ली। आदमी पार्टी (AAP) के 20 विधायकों की सदस्यता समाप्त हो गई है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इन विधायकों को अयोग्य करार देने की चुनाव आयोग की सिफारिश पर मुहर लगा दी है। वहीं, लाभ के पद को लेकर अयोग्य करार दिए गए 20 विधायकों के मामले पर दिल्ली की AAP सरकार अब जनता के दरबार में पहुंच गई है। 20 विधायकों की योग्यता जाने के 24 घंटे के भीतर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली की जनता के नाम खुला खत लिखा है। इस खत में उन्होंने पूछा है कि दिल्ली को इस तरह उपचुनाव में धकेलना क्या ठीक है? वहीं, चुनाव आयोग के फैसले पर महज दो दिन के भीतर राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने पर आम आदमी पार्टी हैरानी जता रही है। मनीष सिसोदिया ने इसे गंदी राजनीति कहते हुए एक चिट्ठी ट्वीट की है और जनता से पूछा है- चुने हुए विधायकों को इस तरह गैर-संवैधानिक और गैरकानूनी तरीके से बर्खास्त करना क्या सही है?

बता दें कि इससे पहले रविवार को आधिकारिक प्रवक्ता ने राष्ट्रपति द्वारा 20 AAP विधायकों की सदस्यता रद करने की जानकारी दी थी। इसके बाद कानून मंत्रालय ने भी इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी थी। ये सभी विधायक 13 मार्च, 2015 से 8 सितंबर, 2016 तक संसदीय सचिव पद पर थे, जिसे ‘लाभ का पद’ माना गया है।

अलग तरह की राजनीति का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी के लिए इसे एक बड़े नैतिक संकट के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि आप ने विधायकों की सदस्यता रद करने का पूरा दोष चुनाव आयोग पर मढ़ते हुए इसे राजनीतिक साजिश करार दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेता आशुतोष ने इस फैसले को ‘असंवैधानिक तथा लोकतंत्र के लिए खतरा’ बताया। वहीं, आप के दिल्ली संयोजक गोपाल राय ने कहा कि राष्ट्रपति से न्याय की उम्मीद थी। पार्टी ने उनसे मुलाकात का समय भी मांगा था। लेकिन, राष्ट्रपति के सामने हमें अपनी बात रखने का मौका ही नहीं दिया गया। वहीं भाजपा और कांग्रेस ने इस फैसले को सही ठहराया है।

चुनाव आयोग ने जून 2016 में इन विधायकों के खिलाफ आई शिकायत को सही ठहराते हुए शुक्रवार को सदस्यता रद करने की सिफारिश राष्ट्रपति से की थी। आप ने विधायकों के वेतन या सुविधा नहीं लेने का हवाला देते हुए लाभ का पद होने से इन्कार किया था। लेकिन, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जया बच्चन केस का हवाला देते हुए आप के तर्कों को खारिज कर दिया। आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा कि संसदीय सचिव के तौर पर विधायकों ने वेतन या सुविधाएं ली हैं या नहीं यह अप्रासंगिक है। इसमें अहम बात यह है कि कोई पद लाभ के दायरे में आता है, तो फिर कानून के मुताबिक सदस्यता जाएगी। चुनाव आयोग द्वारा अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति के पास भेजे जाने के तुरंत बाद शुक्रवार को ही इन विधायकों ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

फरवरी 2015 के चुनाव में आप की भारी जीत में सत्ता और पद का लोभ नहीं होने के उसके वादे की खास भूमिका थी। मगर सत्ता में आने के कुछ ही महीने के भीतर विधायकों में पद की ललक फूटने लगी। पार्टी में किसी तरह की भगदड़ रोकने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 21 विधायकों को सरकार के तमाम मंत्रलयों में संसदीय सचिव नियुक्त कर दिया। लेकिन, ये सभी विधायक लाभ के पद मामले में फंस गए। इनमें एक विधायक जरनैल सिंह ने पिछले साल पंजाब में चुनाव लड़ने के लिए विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था।