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March 28, 2024
स्वास्थ्य

मोदी सरकार ने लगाई ई-सिगरेट पर पावंदी

  • September 20, 2019
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मोदी सरकार ने लगाई ई-सिगरेट पर पावंदी

2007 में जब ई-सिगरेट पहली बार बाजार में इस वादे के साथ आई थी कि वह लोगों को धूम्रपान (स्मोकिंग) की लत छुड़ाने में मदद करेगी। हालांकि जब स्वास्थ्य मंत्रालय को यह संदेह हो गया कि इसका असर वादे से ठीक विपरीत हो रहा है और यह और लोगों को धूम्रपान के लिए उकसा रही है, इस वजह से सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी है।

भारत सरकार ने ई-सिगरेट के बारे में जाना कि ई-सिगरेट आम लोगों के साथ ही खास तौर पर युवाओं में निकोटिन पर निर्भरता को महामारी का रूप दे रही है. ई-सिगरेट कई प्रकार की आती हैं- उपयोग के बाद फेंकी जाने वाली, रिचार्ज की जा सकने वाली और मॉड्यूलर. ई-सिगरेट दरअसल निकोटिन आपूर्ति प्रणाली (ईएनडीएस) की तरह काम करती हैं- वह इसका इस्तेमाल करने वालों को एयरोसोल के तौर पर निकोटिन उपलब्ध कराती है।

भारत सरकार वक्त-वक्त पर हर किस्म की ईएनडीएस को प्रतिबंधित करने को मंजूरी दे चुकी है, जिसमें वेप्स, वेप पेन्स, ई-हुक्का और शीशा भी शामिल हैं। पिछले साल ही केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने इनके इस्तेमाल के खिलाफ एक सलाह जारी की थी। इस साल इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के समर्थन के साथ भारत सरकार सभी किस्म की वेप्स पर प्रतिबंधित कर चुकी है।

आईसीएमआर के अनुमान के मुताबिक भारत में ई-सिगरेट के 400 ब्रांड्स और 7700 से ज्यादा फ्लेवर्स (निकोटिन के साथ और निकोटिन के बगैर) मिलते रहे हैं। भारत में ई-सिगरेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या को लेकर अपर्याप्त आंकडों के कारण यह समझ पाना मुश्किल है कि प्रतिबंध से आम व्यक्ति पर कितना असर पड़ेगा। लेकिन यह सवाल तो उठ ही खड़ा होता है- ई-सिगरेट कैसे काम करती हैं और क्या विज्ञान में ऐसा कोई आधार है जो यह साबित कर सके कि वह धूम्रपान की लत छोड़ने में मदद करती है?

अमेरिकी खाद्य व दवा प्रशासन (एफडीए) ने अब तक ई-सिगरेट को धूम्रपान बंद करने में सहायक के तौर पर मंजूरी नहीं दी है। ऐसा कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं कि वह किसी व्यक्ति को धूम्रपान की लत से निजात दिलाने में मददगार होती हैं। विश्व तंबाकूरहित दिवस पर 31 मई 2019 को आईसीएमआर ने एक श्वेत पत्र जारी किया, जिसके मुताबिक ई-सिगरेट में मौजूद निकोटिन की अल्प मात्रा का कथित उद्देश्य से विपरीत असर हो सकता है। वह धूम्रपान न करने वालों को भी निकोटिन का आदी बना सकती है।

आईसीएमआर में गैर-संचारी बीमारियों (नॉन कम्युनिकेबल डिसीजेज) संबंधी विभाग के वैज्ञानिक जॉय कुमार चकमा ने इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित रिसर्च पेपर में वेपिंग उपकरणों के खतरों का साफ तौर पर जिक्र किया है। उनके मुताबिक, “युवाओं में ई-सिगरेट तेजी से लोकप्रिय हुई। जहां तक इनके धूम्रपान की लत को छोड़ने में मददगार होने की बात है तो यह लगभग निकोटिन पैचेस जितनी ही असरदार हैं, कम नही। विभिन्न ब्रांड्स में निकोटिन की मौजूदगी की मात्रा कम-ज्यादा होने से ई-सिगरेट पूरी तरह से गैर-भरोसेमंद विकल्प है।” डॉ. चकमा आगे कहते हैं, “इन उपकरणों से फायदे की बात करने वाले निश्चित तौर पर निकोटिन फिक्स के वेपिंग की ओर मुड़े होंगे।”

अमेरिकी यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर, डीन ई. श्रॉफनेगल, ने अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समुदायों में वेपिंग के समाज में प्रभावों का खुलासा किया है। वह कहते हैं कि वेपिंग की लोकप्रियता ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान के व्यवहार को बढ़ावा दिया है। अगर इस पर वक्त रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो निकोटिन पर निर्भरता और यहां तक कि परंपरागत धूम्रपान को सामाजिक स्वीकृति मिलने की स्थिति आ जाएगी।

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित श्वेत पत्र में ईएनडीएस को इंसानी सेहत के लिए संभावित खतरा करार दिया। एक ऐसा खतरा है जिसका असर गर्भ से कब्र तक होता है।

ई-सिगरेट की कार्ट्रिज में आमतौर पर तरल पॉलिप्रोपिलिन ग्लायकॉल या ग्लिसरॉल होता है, फिर उसमें निकोटिन हो या न हो। इस कार्ट्रिज को गर्म करने से एयरोसोल तैयार होता है जो वेपर्स के तौर पर भीतर लिया जाता है.

ई-सिगरेट्स के अधिकांश ब्रांड्स में एल्डेहाइड्स, टार्पिन्स, भारी धातु और सिलिकेट कणों जैसे घातक पदार्थ होते हैं. यह हमारे शरीर की तकरीबन हर एक महत्वपूर्ण प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं, जिसमें कार्डियोवेस्कुलर प्रणाली के साथ हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली भी शामिल है।

अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक चिंता की बात यह भी है कि उसके दुष्परिणाम भी धूम्रपान की लत की तरह ही होते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक लेख में वेपिंग के साथ ई-सिगरेट लिक्विड (ईसीएल) के नकारात्मक प्रभावों की चर्चा की गई है। इंस्टीट्यूट ऑफ इनफ्लेमेशन एंड एजिंग, बर्मिंघम, यूके के अनुसंधान के मुताबिक ईसीएल के संघनित उत्पाद (कंडेंसेशन प्रॉडक्ट), फेफड़ों के लिए मूल लिक्विड से भी ज्यादा घातक होते हैं। यह मैक्रोफेंजेस (एक किस्म की रोग प्रतिरोधक कोशिका) को प्रभावित कर फेफड़ों में मौजूद वायुकोषों, एलवेओली, में सूजन की वजह बनते हैं। इससे व्यक्ति पर फेफड़ों की लंबी बीमारी (क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज/सीओपीडी) का खतरा बढ़ जाता है।

एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि वेप्स द्वारा छोड़े गए अतिसूक्ष्म कणों ने रक्त-वायु सीमा को लांघकर डीएनए में प्रवेश कर लिया, जिससे कैंसर का खतरा गया। विशेषज्ञों की ई-सिगरेट के दुष्परिणाम साथी के धूम्रपान से दूसरों को होने वाले दुष्परिणामों जितने ही घातक हैं।

ई-सिगरेट के स्वास्थ्य पर साबित दुष्परिणामों के बावजूद समर्थकों का कहना है कि वेपिंग उतनी बुरी नहीं है जितनी कि इसे बताया जा रहा है। कोक्रेन लाइब्रेरी में प्रकाशित एक रिव्यू में यह सबूत दिया गया कि लंबी अवधि में इस्तेमाल पर यह धूम्रपान की लत से छुटकारा दिला सकती है। इस रिव्यू में 24 अध्ययनों का सहारा लिया गया था, जिसमें से दो रैंडम कंट्रोल ट्रायल्स थे और 21 विविधतापूर्ण (कोहर्ट) ट्रायल्स।

यूनिवर्सिटी ऑफ एबर्डीन फॉरेस्टरहिल के सेंटर ऑफ एकाडमिक प्राइमरी केयर की एमिरेटस प्रोफेसर क्रिस्टिन एम. बांड ने अपने लेख “डू द बेनेफिट्स ऑफ ई-सिगरेट्स आउटवे द रिस्क्स” में ई-सिगरेट की नकारात्मक छवि प्रस्तुत किए जाने का मुखर विरोध किया है। कनाडा के जर्नल ऑफ हॉस्पिटल फार्मेसी में प्रकाशित इस लेख में बांड लिखती हैं, “हर दवा के अपने साइड इफेक्ट्स होते हैं। उसके इस्तेमाल का विकल्प उसके फायदों और जोखिम पर निर्भर करता है।” द पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड भी यह कहकर ई-सिगरेट्स का समर्थन करता है कि यह तंबाखू से कम नुकसानदेह है।

सरकार ने यह महसूस किया कि ई-सिगरेट के नफे-नुकसान को परे रखकर इन पर पूर्ण प्रतिबंध न लगाया जाए, लेकिन इनके उत्पादन और इस्तेमाल पर नियंत्रण की आवश्यकता महसूस की गई भारत में खाद्य सुरक्षा और मानक (प्रतिबंध व बिक्री पर प्रतिबंध) नियम 2011 के तहत निकोटिन का इस्तेमाल पहले से ही नियंत्रित है।