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छात्र एवं शिक्षा

जेएनयू पर क्यों नहीं पड़ती त्वरित फ़ैसले लेने वाले मोदी राज की नज़र …!

  • February 10, 2018
  • 1 min read
जेएनयू पर क्यों नहीं पड़ती त्वरित फ़ैसले लेने वाले मोदी राज की नज़र …!

भारत में सरकारें सबसे बड़ी मुक़दमेंबाज़ होती हैं और सबसे ज़्यादा मुक़दमें हारती भी हैं। क्योंकि ज़्यादातर मुक़दमेंबाज़ी आला सरकारी अफ़सरों की हेकड़ी और मनमानेपन की वजह से दर्ज होते हैं। अफ़सरों को मुक़दमे लड़ने में बहुत लुत्फ़ आता है, क्योंकि इसका ख़र्च और इससे होने वाले नुक़सान का बोझ बेचारी ग़रीब जनता उठाती है! आपराधिक मामलों में सरकार की जायज़ और नाजायज़ साख़ पुलिस में निहित होती है। इसीलिए पुलिस के काम में सबसे ज़्यादा दख़लन्दाज़ी होती है। पुलिस भी 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मामलों में अदालत में ग़लत साबित होती है। पुलिस ही या तो ग़लत लोगों को तरह-तरह के मुक़दमों में ज़बरन लपेटती है या फिर अपनी अधकचरी जाँच की वजह से आरोपियों को क़सूरवार साबित नहीं कर पाती। इसीलिए 20/30 साल की मुक़दमेंबाज़ी के बाद ज़्यादातर आरोपी बाइज़्ज़त बरी हो जाते हैं और शातिर अपराधी ज़मानत पर रिहा होकर और अपराधों को अंज़ाम देते रहते हैं! जनता ये सब देख और झेलकर कलपती और बिलखती रहती है!

सरकारें बदलती हैं तो भी हालात नहीं बदलते। उल्टा बहुत सारी नयी बीमारियाँ और अफ़साने सामने आ जाते हैं। दो साल पुराना ‘जेएनयू नारेबाज़ी काँड’ भी ऐसा ही एक शानदार अफ़साना है! जिसमें हुए किसी भी तरह की ज़ुल्म-ज़्यादती की जबावदेही किसी की नहीं है! कोई पूछने-बताने वाला नहीं है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय की सीधी छत्रछाया में पलने वाली दिल्ली पुलिस दो साल बीतने के बाद भी अभी तक अपनी जाँच पूरी क्यों नहीं कर सकी? अदालत में आरोप-पत्र क्यों नहीं दाख़िल हो पाया? देशद्रोह जैसे अति गम्भीर मामले में पुलिस और मोदी सरकार का ऐसा निकम्मापन बेहद शर्मनाक है!

यदि पुलिस को कन्हैया और अन्य छात्रों के ख़िलाफ़ अपराध साबित करने लायक सबूत नहीं मिले तो कुछ मनगढ़न्त और फ़र्ज़ी सबूतों के आधार पर भी तो आरोप-पत्र दाख़िल किया जा सकता है। आरोपी बरी होते तो हो जाते! रोज़ाना, हज़ारों आरोपी बरी होते हैं। जेएनयू के आरोपी छात्र बरी भी हो जाते तो कौन सा आसमान टूट पड़ता!

एक और रास्ता हो सकता था कि सबूत की कमी को आधार बनाकर केन्द्र सरकार आरोपी छात्रों से जुड़े मुक़दमों को वैसे ही वापस ले लेती, जैसे कश्मीर में मुसलमान पत्थरबाज़ों और उत्तर प्रदेश में भगवा दंगाईयों तथा हरियाणा में जाट बलवाईयों के ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमों को वापस लिया गया है! लेकिन चूँकि, मोदी राज में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे जेएनयू के छात्रों का रंग भगवा नहीं बल्कि लाल है, इसीलिए न तो चार्ज़शीट दाख़िल होगी और ना ही मुक़दमों को वापस लेकर ख़त्म किया जाएगा! ताकि इस मामले को बोफोर्स या चौरासी के दंगों की तरह भविष्य में कभी फिर से खोलने की नौबत ही नहीं आये। भविष्य के लिए भी ख़ुराक़ को बचाकर रखना ही तो दूरदर्शिता है !