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May 11, 2024
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जिसे सारी दुनिया खोजी पत्रकारिता कहती है, उसे हमारी सरकार ‘चोरी’ कह रही है…

  • March 6, 2019
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जिसे सारी दुनिया खोजी पत्रकारिता कहती है, उसे हमारी सरकार ‘चोरी’ कह रही है…

जिसे सारी दुनिया खोजी पत्रकारिता कहती है, उसे हमारी सरकार ‘चोरी’ कह रही है. दिलचस्प यह है कि आज जब सर्वोच्च अदालत में इस मामले पर सुनवाई होनी थी, द हिंदू के एन. राम ने एक और रिपोर्ट छाप दी. द हिंदू ने इस मसले पर कई रिपोर्ट छापी हैं जो दस्तावेजों पर आधारित हैं और उनसे गंभीर सवाल खड़े हुए हैं. प्रशांत भूषण ने कोर्ट में एन. राम की रिपोर्ट पेश करते हुए दलील दी कि सरकार ने पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट से महत्वपूर्ण तथ्य छुपाए थे. इसके जवाब में सरकार ने कहा कि ये रिपोर्ट चोरी किये गए दस्तावेजों पर आधारित है, इसलिए इसे कोर्ट में पेश नहीं किया जा सकता. मतलब साफ है कि सरकार के अपने ही दस्तावेजों में उसकी चोरी दर्ज है जो अब सामने आ गई है. तो क्या इसीलिए सरकार राफेल घोटाले में किसी भी जांच से भाग रही है?

https://www.youtube.com/watch?v=FXPvEfWwXdU

खैर, अब सरकार ने कोर्ट में नया पैंतरा चलते हुए दूसरा तर्क दिया है कि अगर कोर्ट जांच का आदेश देती है तो देश का बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा, क्योंकि राफेल राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है. यह अजीब तर्क है. अगर देश की इतनी चिंता थी तो देश की सुरक्षा के लिए हो रहे सौदे में घोटाला क्यों कर लिया? इस घोटाले में हर कदम पर नियमों का उल्लंघन किया गया है जिससे देश के खजाने को अरबों का नुकसान हुआ और जो सौदा हुआ है, पुराने सौदे के मुकाबले इसमें हर हाल में देश का घाटा है. जहां तक दस्तावेज चोरी की बात है तो इतिहास में जितने घोटाले सामने आए हैं, वे सब पिछले दरवाजे से ही आये हैं. कोई सरकार अपना घोटाला खुद नहीं बताती. पत्रकार अपने आधिकारिक सूत्रों से सूचनाएं बाहर लाते हैं और जनता को पता चलता है कि कौन बोफोर्स चोर है, कौन कोयला चोर है, कौन कफन चोर है और कौन राफेल चोर. इस बार शायद ये पैंतरे काम न आएं.

https://www.youtube.com/watch?v=YFA9GsahsNc

एक और दिलचस्प बात है कि राफेल घोटाले के सारे तथ्य अब जनता के सामने हैं, लेकिन हिंदी मीडिया इन तथ्यों के सार्वजनिक होने के बाद भी अपने पाठकों तक नहीं पहुंचा रहा है. हिंदी मीडिया सिर्फ वही सूचनाएं अपने पाठकों तक पहुंचाता है जिसे सरकार चाहती है या जो सरकार के फायदे में है. बहरहाल, अभी यह देखना बाकी है कि क्या भ्रष्टाचार को दक्षिणपंथी उन्माद से ढंका जा सकता है?

-पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वाल से