कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर पढ़िए ध्रुव गुप्त का आर्टिकल : जाने कहां गए वो लोग !
दलितों, पिछड़ों और वंचितों के मसीहा, समाजवाद के सबसे मजबूत स्तम्भों में एक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर ने बगैर किसी तामझाम और प्रचार के बिहार की राजनीति में न्याय, पारदर्शिता, ईमानदारी और के जो प्रतिमान उपस्थित किए, उसके आसपास भी पहुंचना उनके बाद के किसी राजनेता के लिए संभव नहीं हुआ। एक गरीब नाई परिवार से आए कर्पूरी जी सत्ता के तमाम प्रलोभन और आकर्षण के बीच भी जीवन भर सादगी, सौम्यता और निश्छलता की प्रतिमूर्ति बने रहे। अपनी जनपक्षधरता और सिद्धांतों के साथ उन्होंने कभी समझौते नहीं किए। ईमानदारी ऐसी कि अपने लंबे मुख्यमंत्रित्व-काल में उन्होंने सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिए नहीं किया। उनके परवर्ती मुख्यमंत्रियों के घरों में कीमती गाड़ियों का काफ़िला देखने के आदी लोगों को शायद विश्वास नहीं होगा कि कर्पूरी जी ने मुख्यमंत्री रहते हुए एक बार अपनी बेहद बीमार पत्नी को इलाज के लिए रिक्शे से अस्पताल भेजा था ।
‘गुदड़ी के लाल’ कहे जाने वाले ‘बिहार के भूमिपुत्र’ कर्पूरी जी की जयंती पर शत-शत नमन !
-लेखक ध्रुव गुप्त पूर्व आईपीएस हैं और वरिष्ठ साहित्यकार हैं ।