बेबाक, निष्पक्ष, निर्भीक
March 29, 2024
ब्लॉग समाज

पढ़ें मीडिया को आईना दिखाता यह आर्टिकल- ‘लानत है पत्रकार संगठनों पर’

  • March 9, 2018
  • 1 min read
पढ़ें मीडिया को आईना दिखाता यह आर्टिकल- ‘लानत है पत्रकार संगठनों पर’

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार नवेद शिकोह ने सोशल मीडिया पर अपने एक आर्टिकल से पत्रकार संगठनों को आईना दिखाया है | उन्होंने मीडिया समूहों की चापलूसी, पत्रकार संगठनों की चापलूसी पर बड़ा तंज किया है | हाल ही में आजतक से पुण्य प्रसून के नाता तोड़ने से आहत दिखे नवेद ने यहाँ तक कह दिया है कि पत्रकारों से ज्यादा संगठित हैं फिल्म के सैट पर पानी पिलाने वाले स्पाट ब्वाय | पढ़िए नवेद का यह फेसबुक पोस्ट-

मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वालों का सिर्फ एक संगठन है और न्यूज मीडिया के हजारों संगठन हैं। फिर भी न्यूज चैनल्स और अखबारों के पत्रकारों को बेवजह बाहर कर दिया जाता है और एक भी पत्रकार संगठन पीड़ित पत्रकार के पक्ष में सामने नहीं आता। फिल्म यूनिट का अदना सा एक वर्कर या कलाकार बेवजह निकाला जाये तो उनकी यूनियन एक मिनट में काम बंद करवा देती है। इस खौफ से कोई निर्माता अपने यूनिट के लोगों का शोषण करने से पहले सौ बार सोचता है।

फिल्मों शूटिंग के स्पाट ब्वाय से भी गया गुजरा हो गया है देश के पत्रकारों का वजूद । फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वालों का सिर्फ एक संगठन है। और इसका इतना रुतबा है कि संजय लीला भंसाली या करन जौहर जैसे दिग्गज निर्माता-निर्देशक किसी स्पाट ब्वाय से भी बद्तमीजी से बात नहीं कर सकते हैं। किसी कलाकार/तकनीशियन/हैल्पर को यूनिट से बाहर कर देना तो दूर की बात है। बिना किसी गंभीर कारण के यदि यूनिट के किसी भी वर्कर को कोई निकालने का दुस्साहस करता है तो संगठन शूटिंग का काम ही ठप करवा देता है।

न्यूज मीडिया कर्मियों के संगठनों को चलाने वाले पत्रकार नेताओं को सरकारों और मीडिया समूहों के पूंजीपति मालिकों की चाटुकारिता से ही फुर्सत नही, इसलिए वो पत्रकारों के शोषण की तरफ मुड़ कर देखने की भी जहमत नहीं करते। प्रायोजित और झूठी खबरों के बजाय जो पत्रकार सच दिखाने/लिखने की जुर्रत करते है उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। इधर देशभर के छोटे-बड़े अखबारों/चैनलों से सैकड़ों – हजारों पत्रकार निकाले जा रहे हैं।
दरिया में रहकर मगर से बैर करने वाले पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी भी पैदल हो गये। खबर है कि आजतक ने प्रसून को चैनल छोड़ने पर मजबूर कर दिया। प्रसून सच छिपाने के आदि नहीं थे और झूठ दिखाना उनकी फितरत में नहीं था। बताया जाता है कि न्यूज चैनल्स को सबसे ज्यादा विज्ञापन देने वाली पतंजलि के बाबा रामदेव से सख्त सवाल पूछ लेने की सजा में इन्हें आजतक छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया।

P. R Agency की तरह काम कर रहे न्यूज चैनल्स में जो भी पत्रकार सच्ची पत्रकारिता का धर्म निभाने का दुस्साहस कर रहा है उसे बेरोजगारी का इनाम मिल रहा है। प्रसून जैसे ब्रांड की खबर आप तक पंहुच जाती हैं लेकिन छोटे-अखबारों-चैनलों में पत्रकारों को ऐसे बाहर किया जा रहा है जैसे आंधी आने पर फलदार वृक्ष से फल गिरते हैं। बड़े-बड़े पत्रकारों को बेवजह बाहर करने की खबरें तो आपने सुनी होगी, लेकिन क्या आपने कभी ये सुना है कि किसी पत्रकार को बेवजह/ गैर कानूनी/गैर संवैधानिक तौर पर निकाले जाने के विरोध में कोई पत्रकार संगठन आवाज उठा रहा हो !

– लेखक नवेद शिकोह (स्वामी नवेदानंद) लखनऊ से है और पत्रकारिता से लम्बे समय से जुड़े हैं |
Na*********@re********.com