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अटल की पुण्यतिथि पर पढ़िए ध्रुव गुप्त का आर्टिकल- गीत नहीं गाता हूं !

  • August 16, 2019
  • 1 min read
अटल की पुण्यतिथि पर पढ़िए ध्रुव गुप्त का आर्टिकल- गीत नहीं गाता हूं !

जनसंघ और भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति में अटल बिहारी बाजपेयी हिंदुत्व के एकमात्र उदार और समावेशी नेता थे जिनके मन में सभी धर्मों के प्रति आदर भी था और सबको साथ लेकर चलने की काबिलियत भी। लोगों ने उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखौटा भी कहा और एक गलत विचारधारा के जुड़ा सही राजनेता भी, लेकिन यह भी सही है कि अपने दल में वे ऐसे एकमात्र शख्सियत थे जो संघ की विचारधारा की उपज होनेके बावजूद उससे इतर अपने लिए एक अलग रास्ता बना सके। उनके कुछ विवादास्पद वक्तव्यों को छोड़ दें तो सर्वधर्म समभाव के वे मुखर प्रतीक रहे। वे भाजपा के एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्हें विरोधी दलों के नेताओं से भी आदर और सम्मान मिला और देश के सभी धर्मावलंबियों से भी। दुर्भाग्य से 2004 में उनके सत्ता से बेदखल होते ही भाजपा ने उदारवादी हिंदुत्व का मुखौटा भी निकाल फेंका। उनके राजनीति से कटते ही संघ ने पार्टी पर एक बार फिर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। 2014 में भाजपा की अटल विरासत को पूरी तरह खारिज कर जो सरकार और जैसी पार्टी बनी, अच्छा हुआ कि उसे देखने के पहले अटल जी अपनी याददाश्त खो बैठे थे। भारतीय राजनीति के शिखर पुरुषों में एक अटल जी की पुण्यतिथि पर हमारी विनम्र श्रद्धांजलि, उनकी एक कविता की कुछ पंक्तियों के साथ !

https://youtu.be/GyT40FAIuk8

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं