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#AMU : इतिहास को हिंसा और खून-खराबे की कहानी के रूप में नही देखना चाहिए – डॉ आडरे

  • August 19, 2018
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#AMU : इतिहास को हिंसा और खून-खराबे की कहानी के रूप में नही देखना चाहिए – डॉ आडरे

अलीगढ़ । इतिहासकार व अमेरिका के रजर्स विश्वविद्यायल न्यू जर्सी की इतिहास की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आडरे टुरूस्के ने शनिवार को एएमयू के सेंटर ऑफ एडवास्ड स्टडी, इतिहास विभाग में अपना दूसरा व्याख्यान दिया। उन्होंने हिन्दुस्तानी बादशाह: हिन्द-इस्लामी शासन की संस्कृत साहित्यिक इतिहास विषय पर विचार रखे। वहीं प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब ने भी अपने विचार रखे। डॉ़ आडरे ने भारत में मुसलमानों के आक्रमणों पर संस्कृत श्रोत के अध्ययन से ऐतिहासिक शोध के कार्य क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए कहा कि संस्कृत शोध की अनदेखी करना वास्तव में प्राच्यविदों के पक्षपात का सबूत है। भारतीय इतिहास या तो अस्तित्व विहीन है या असत्य है। संस्कृत साहित्यिक काव्य परंपरा 12वीं शताब्दी में मुसलमानों के आने को भारतीय परिप्रेक्ष में समझने में बहुत सहायक है। डॉ़ आडरे ने तीन मुख्य श्रोत पृथ्वी राजा विजय लेखक जियानका (1911), मधुराविजया लेखक गंगा देवी (1380) और हम्मी रामाहा काव्य लेखक नया चन्द्रा का उल्लेख किया है। उनकी आगामी पुस्तक इसी पर आधारित है। प्रोफेसर आडरे ने कहा कि इतिहास को हिंसा व खून खराबे की कहानी के रूप में नहीं देखना चाहिए बल्कि आपसी सांस्कृतिक लेनदेन व आपसी प्रेम पर ध्यान आकर्षित करना चाहिए।

प्रो़ इरफान हबीब ने डॉ़ आडरे के श्रोत का आलोचनात्मक विश्लेषण करते हुए बताया कि महमूद गजनवी के आक्रमण के समय होने वाले खून खराबे की अलबेरूनी ने आलोचना की है। कहा कि भारत में मुसलमानों के आने के परिप्रेक्ष में संस्कृत श्रोत में सांस्कृतिक मेलजोल के साथ विभिन्न पहचानों के बीच टकराव को आसानी से देखा जा सकता है।

इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. अली नदीम रेजावी ने बताया कि डॉ. आडरे का व्याख्यान भारतीय इतिहास को समझने में समकालीन संस्कृत शोध का अध्ययन है, जो उनकी आने वाली पुस्तक का भाग है।